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जो इंसान सही और गलत, पसंद और नापसंद के दायरे में ही फंसा हुआ है, वह प्रेम के तानेबाने को कभी नहीं जान पाएगा।
मूल रूप में, प्रेम का अर्थ हैः पसंदों और नापसंदों से ऊपर उठ जाना।
प्रेम का झरना अनवरत बहता है, उसकी धारा में बहकर देखो कितनी खुशियां मिलतीं हैं। प्यार के सागर में डूबोगे तो मनचाहा पाओगे।
जिस व्यक्ति के अंदर स्वयं को खोने का डर नहीं है, जो इससे मुक्त हो चुका है, वही प्रेम को जान सकता है, वही प्रेम बन सकता है ।
ज्यादातर लोगों के लिए, प्रेम का मतलब होता है, ‘तुम्हें वही करना चाहिए, जो मैं चाहता हूं।’ नहीं, प्रेम का असली मतलब है कि वे जो चाहें कर सकते हैं, और हम फिर भी उन्हें प्रेम करते हैं।
अपने प्रेम, अपनी खुशी और अपने उल्लास को रोककर मत रखें। आप जो देते हैं, वही आपका गुण बन जाता है, न कि वह जो आप रोक कर रखते हैं।
भाइयों में प्रेम होने से टेंशन खत्म हो जाती हैं।
प्रेम कोई सहूलियत का साधन नहीं है। यह खुद को मिटाने की एक प्रक्रिया है।
प्रेम तो खुद का पूर्ण समर्पण है इसमें ईगो और अनादर का कोई स्थान नहीं होता.
अपने प्रेम, अपनी खुशी और अपने उल्लास को रोककर मत रखें। आप जो देते हैं, वही आपका गुण बन जाता है, न कि वह जो आप रोक कर उल्लास हैं।