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आज खुदा ने मुझसे कहा भुला क्यों नहीं देते उसे मैंने कहा इतनी फिक्र है तो मिला क्यों नहीं देते !
ईश्वर से कोई भी प्रेम कर सकता है क्योंकि वह आपसे कुछ नहीं मांगता। पर अपने पास खड़े व्यक्ति से प्रेम करने की कीमत जीवन से चुकानी पड़ती है।
मैं बेचैन सा लगता हूं वो राहत जैसी लगती हैं मैं खो जाता हूं ख्वाबों में वो भीतर मेरे जगती हैं !
ख़ुशी, शांति और प्रेम – ये कोई आध्यात्मिक लक्ष्य नहीं हैं। यह सब तो समझदारीपूर्वक जीने की शुरुआत है।
ना चांद की चाहत ना सितारों की फरमाइश, हर जन्म में तू मिले मेरी बस यही ख्वाहिश !
मूल रूप में, प्रेम का अर्थ हैः पसंदों और नापसंदों से ऊपर उठ जाना।
तर्क से परे एक आयाम है। जब तक आप वहां नहीं आयामजाते, आप ना तो प्रेम की मधुरता, ना ही ईश्वर को जान आयाम।
अपने प्रेम, अपनी खुशी और अपने उल्लास को रोककर मत रखें। आप जो देते हैं, वही आपका गुण बन जाता है, न कि वह जो आप रोक कर उल्लास हैं।
प्रेम कोई रिश्ता नहीं है। प्रेम तो भावनाओं की एक तरह की मिठास है।
मुझसे मत पूछना कि मैं तुमसे इश्क़ क्यों करता हूं, क्योंकि फिर मुझे वजह बतानी पड़ेगी अपने जीने की !