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मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है

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दोस्ती में भी उतार चढाव होते हैं। आपके मन अलग होते हैं, कभी कभी आप दोनों अलग हो जाते हैं, लेकिन फिर वापस एक साथ हो जाते हैं। यही तो दोस्ती हैं।
सच्ची दोस्ती सच्चा ज्ञान दे सकती हैं।
दोस्ती मोहब्बत का फूल है संभाल कर रखना, टूटे ना दिल किसी का बस इतना ख्याल रखना!
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं
दोस्ती जब किसी से की जाए दुश्मनों की भी राय ली जाए
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा दोस्तों को आज़माते जाइए
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
दोस्ती एक फुल टाइम बिज़नस हैं।