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न जाने किस दरबार का चिराग़ हूँ मैं , जिसका दिल करता है जलाकर छोड़ देता है

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हर आदमी के अपने गुप्त दुख होते हैं जिन्हें दुनिया नहीं जानती; और कई बार हम किसी आदमी को कठोर समझते हैं जब वह केवल उदास होता है।
मौन, मैंने समझा है , एक ऐसी चीज़ है जो आप वास्तव में सुन सकते हो।
किसी को उजाड़ कर बसे तो क्या बसे किसी को रुलाकर हँसे तो क्या हँसे
जो मैं जलते चिराग में पड़ा तेल हूँ, तो सच यह है कि बहना तुम उस चिराग में जलती बाती हो।
बहुत अंदर तक तबाह कर देते हैं वो अश्क़ जो आँखों से गिर नहीं पाते।
उदास करती है मुझे हर रोज़ ये शाम, ऐसा लगता है जैसे कोई भुला रहा है धीरे-धीरे…!!
घाव ठिक हो जाने से, हादसे नही भूले जाते..
नाज़ुक लगते थे जो लोग, वास्ता पड़ा तो पत्थर के निकले
आँसुओ का कोई वज़न नहीं होता, लेकिन निकल जाने पर मन हल्का हो जाता है
अगर तुम मेरे घर के चिराग नहीं हो तो मेरा मन सूना है। अगर तुम मेरी बहन होती तो मैं फिर कभी इस तरह नहीं मुस्कुराता