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मैं ज़िन्दगी से नहीं, अपने आप से नाराज़ हूँ – अर्जुन

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ना कोई तरंग है, ना कोई उमंग है मेरी ज़िन्दगी भी क्या एक कटी पतंग
ज़िन्दगी मुझे सताती बहुत है, मेरी मेहनत देख खफ़ा जो रहती है।
अपने रिश्तो को उस ताले की तरह बनाओ जिसे हथोड़े की चोट तो मंजूर हो, मगर किसी दूसरी चाबी से खुलना मंजूर नहीं.
जिसके पास उम्मीद और आस है, वो ज़िन्दगी के हर इम्तिहान में पास हैं…!
कोई सिखादे मुझे भी अपने वादों से मुक़र जाना ! बहुत थक चुका हूँ निभाते-निभाते.
स्टेशन जैसी हो गयी है ज़िन्दगी, जहां लोग तो बहुत है, पर अपना कोई नह।
दुःख तुमने मुझे नहीं दिया है मैंने अपने आप को
अपने लक्ष्य को पाने के लिए जितनी मेहनत करेंगे, उतनी ही बड़ी सफलता
ज़िन्दगी में कुछ ज़ख्म ऐसे होते है जो कभी नहीं भरते बस इंसान उन्हें छुपाने का हुनर सीख जाता है
ज़िन्दगी में एक हसी वो होती है जो इंसान अपने ग़म को छुपाने के लिए खुद सीखता है, और एक हसी वो होती है जो इंसान के सारे ग़म भुला देती है