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कौन समझता है किसी को कोई यहां झूठे दिलासे, कोरा सा अपनापन मिलता है मुफ्त में यहां।
मन का उधड़ा वसन है सिलेगा नहीं फूल उपवन मे कोई खिलेगा नहीं यूँ तो मुझसे भी बेहतर मिलेंगे मगर मेरा पर्याय तुमको मिलेगा नहीं..! - अनन्या राय पराशर
कहो कि कैसे गुजर रही है रात भारी या दिन है गम में, या हमारी तरह जिंदगी रेत सी यूं फिसल रही है।
लम्हे तो है बीते सारे लेकिन लगते है आज भी जैसे हो वो कल
ज़िंदगी की चंद लम्हों में छुपा है सुकून, खुद को खोया है तो ज़िंदगी को भी खो गए हैं, खुद से मिलते हुए ही समझेंगे ज़िंदगी को, यही है ज़िंदगी का असली मज़ा।
तुम्हारी बांहों में मुझे सुकून सा मिलता है। तुम्हारे बिना मैं कुछ भी तो नहीं हूं। तुम मेरी जिंदगी की सबसे कीमती मोती हो जिसे मैं बेइंतहा प्यार करता हूं।
मैंने 'भगवान ' तो नहीं देखा फिर भी ' माँ ' के रूप मे उसका रूप देखा। मैनै ' जन्नत ' तो नहीं देखी फिर भी ' माँ ' के प्यार मे उसका ' दृश्य ' देखा
सुकून ढूंढना है तो खुद में ढूंढो, लोगों में ढूंढोगे तो बेचैन रहोगे
"अपेक्षा" और "उपेक्षा" दोनों का होना ही गलत है "अपेक्षा" खुद को घायल करती है "उपेक्षा" दूसरों को।
जब इंसान जिंदगी कि अपनी सभी इच्छाओं से, मुक्त हो जाता है या कहो वो अपने सारे इन्द्रियों को, अपने काबु में रखता है, तब ही उसे शांति मिल सकती है!