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सहमी हुई थी झोपड़ी बारिश के खौफ से, मेहलो की आरजू थी के बारिश जरा जम के बरसे

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माना दूरियां कुछ बढ़ सी गई है, मगर तेरे हिस्से का वक्त हम आज भी तनहा गुजरते हैं
खाली जेब लेकर निकलो कभी बाजार में, जनाब वहम दूर हो जाएगा इज्जत कमाने का
जहां में डूबा था मुझे वही किनारा चाहिए, तू फिर आ मेरे पास मुझे तू दोबारा चाहिए
बारिश के बाद तार पर टंगी आख़री बूंद से पूछना, क्या होता है अकेला पन।
मैने अपनी परछाई से पूछा तुम मेरे साथ क्यों चलती हो, परछाई ने मुस्कुरा कर बोला अरे पागल मेरे सिवा तेरा है ही कौन
रखना था फासला पर तुमसे दिल लगा बैठे, फिर तुम भी ना हासिल हुए और खुद को भी गवा बैठे
ताकत आवाज़ में नहीं अपने विचार में रखो.. क्योंकि फसल बारीश से होती है बाढ़ से नहीं…
यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं की, खैरियत पूछने वाला आपकी खैरियत भी चाहता हो
दिल कहता है मैसेज कर दू उसे, दिमाग कहता है हर बार जलील होना ठीक नहीं
अरे इतनी नफरत है उसे मुझसे की मैं मर भी जाऊं, तो उसे कोई फर्क नही पड़ेगा