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अब मत खोलना, मेरी ज़िन्दगी की पुरानी किताबो को, जो था वो मैं रहा नहीं, जो हूँ वो किसी को पता नहीं

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मैं ज़िन्दगी से नहीं, अपने आप से नाराज़ हूँ – अर्जुन
ज़िन्दगी में एक हसी वो होती है जो इंसान अपने ग़म को छुपाने के लिए खुद सीखता है
ज़िन्दगी पल-पल ढलती है, जैसे रेत मुठ्ठी से फिसलती है कुछ खोकर पछताना क्यों, ज़िंदगी जैसी भी है बस एक ही बार मिलती है
ज़िन्दगी एक ढलती शाम की तरह है, जिसमें कहीं उथल-पुथल है, तो कहीं थोड़ा आराम भी।
जो उम्मीद दूसरों से करते हो वो खुद से करो और ज़िन्दगी की नई शुरुआत करो।
ज़िन्दगी एक ढलती शाम की तरह है जिसमें कहीं उथल-पुथल है, तो कहीं थोड़ा आराम भी।
ज़िन्दगी मुझे सताती बहुत है, मेरी मेहनत देख खफ़ा जो रहती है।
वो किताबों में लिखा नहीं था , जो सबक़ ज़िन्दगी ने सिखाया मुझे !
लोग जो अपनी जिन्दगी का नियंत्रण अपने हाथो में नहीं लेते उनका नियंत्रण समय के हाथो में चला जाता है
जीवन उनके लिए है जो डरने के बजाय सीखने को तैयार रहते हैं.