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दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है

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अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
जब रिश्ता नया होता है, तो लोग बात करने का बहाना ढूंढते हैं, और जब वही रिश्ता पुराना हो जाता है, तो लोग दूर होने का बहाना ढूंढते हैं।
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
हटाए थे जो राह से दोस्तों की वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं
लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी हम तिरी दोस्ती से डरते हैं
आपका खुद के साथ रिश्ता आपके हर दूसरे रिश्ते के लिए टोन सेट करता है। – रॉबर्ट होल्डन
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है