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ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा

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दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनाकर धोखा देते है
मेरी उड़ानों को खुद पर यकीन है क्योंकि तू मेरा आकाश है घनघोर अंधियारी में तू यार मेरे, तमस मिटाता प्रकाश
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं
दोस्त दो-चार निकलते हैं कहीं लाखों में जितने होते हैं सिवा उतने ही कम होते
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता’बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी
दोस्त दिल रखने को करते हैं बहाने क्या किया रोज़ झूटी ख़बर-ए-वस्ल सुना जाते
मित्र और दुश्मन, दोनों ही जरूरी हैं; एक जीने के लिए, दूसरा जीने का कारण बताने के लिए।
दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनकर धोका देते
दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनकर धोका देते है।
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली दिल ने दुनिया से दोस्ती कर