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दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
झुकने से रिश्ता गहरा हो तो झुक जाओ, पर हर बार आपको ही झुकना पड़े तो रुक
कितना मुश्किल होता है उस शख्स को मनाना, जो रूठा भी ना हो और बात भी ना
वो ढूँढ रहे थे मुझे भूल जाने के तरीके, मैंने उनसे खफा होकर उनकी मुश्किल आसान कर
आज तो हम ख़ूब रुलायेंगे उन्हें, सुना है उसे रोते हुए लिपट जाने की आदत
बहुत मजबूत हो जाते है वो लोग, जिनके पास खोने को कुछ नहीं
जब इंसान अन्दर से टूटता है तो बहार से खामोश हो जाता
बेकार में मोहब्बत से नफरत हो गयी।
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता’बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी
कोई किसी का नहीं होता दुनिया में, जब दिल भर जाता है तो लोग याद करना भी छोड़ देते