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माना दूरियां कुछ बढ़ सी गई है, मगर तेरे हिस्से का वक्त हम आज भी तनहा गुजरते हैं
हमे तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जाणते मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बीना।
ज़िंदगी ना कर जिद उनसे बात करने की, वो बड़े लोग हैं अपनी मर्जी से बात करेंगे
कुछ पल का साथ देकर तुमने, पल पल के लिए बेचैन कर दिया
सहमी हुई थी झोपड़ी बारिश के खौफ से, मेहलो की आरजू थी के बारिश जरा जम के बरसे
धीरज रखना वो कड़ी मेहनत है जो आप तब करते हैं जब आप अपने किए हुए कठिन परिश्रम से थक जाते हैं।
मुझपर बहुत जिम्मेदारियां थी मेरे घर की, माफ करना मैं तेरे इश्क में मर नहीं सकता
सबर मेरा कोई क्या ही आजमाएगा, मैंने हंस के छोड़ा है उसे जो मुझे सबसे प्यारा था
कितना मुश्किल होता है उस शख्स को मनाना, जो रूठा भी ना हो और बात भी ना
किस्मत की लकीरों पर ऐतबार करना छोड़ दिया, जब इंसान बदल सकते हैं तो किस्मत क्यों नहीं